एक्काईशौं शताब्दीमें लोकतान्त्रिकरणके लहर
सीएन थारू
विषय प्रवेश : यथार्थ में नेपाल बहुलराष्ट्रिय राज्य आ यतेका बासिन्दा सबके भाषिक आधार में एक जाति–अनेक भाषा बोलैबला, अनेक जाति–एक भाषा बोलैबला, एक जाति–क्षेत्रगत आधार में बोलल जाईबाला विभिन्न भाषा के प्रयोग करैबला के रुपमें वर्गिकरण करलज्या सकैये। आदिवासी समुदाय में परैबला जाति सब आपन आपन बोली भाषा प्रयोग करैछै। चिन्तन के आधार में अखुन्वों नेपाल में एक भाषा, एक भेष आ एकल जातीय संस्कृति के राज्य के मार्ग निर्देशक सिद्धान्त मानैत नेपाली राष्ट्रियता विकास करैले खोज्ने छै।
जब विश्व प्रणाली सिद्धान्त के विकसित धार येलै, तकरवाद नेपाल एक स्वतन्त्र, सार्वभौमसत्ता सम्पन्न आ अविभाज्य परिभाषित करल गेलै। तै अनुसार नेपाली राष्ट्रियता बाह्य राष्ट्रियता प्रचारित भेलै। मगर आन्तरिक राष्ट्रियता के रुप में थारू, दनुवार, नेवार, तामाङ, राई, लिम्बु, शेर्पा, गुरुङ, मगर, राउटे, कुसुन्डा, राजवंशी, कोच, सतार, झागड, मुसहर, बाँतर, लगायतके आदिवासी जनतासब आपन पहिचान के आधार जोग्याके राखल्कै। तकरा व्यवस्थित करैबला परम्परागत संगठन आधारभुत तहमें अखुन्वों क्रियाशील छै। थारू जति में बरघर/महटावा/माईन्जन परम्परा जीवित छै।
पृथ्वीनारायण शाह सैनिक बलमें आ युद्धमें जीतके औरो स्वतन्त्र राज्य सबके गोरखा राज्य में मिलेल्कै। तकरा वर्तमान नेपाल परिभाषित करैत शाह वंशीय परम्परा शुरुवात भेलै। वि.स. १९०३ में कोतपर्व नरसंहार मच्याके जङ्गबहादुर कुँवर राज्य सत्ता आपन हाँठ में लेल्कै आ राजा अलंकारिक। तहै समय में वि.स. १९१० साल में लिखित कानुन जारी करैत जङ्गबहादुर चाईर वर्ण ब्राहमण, क्षेत्री, वैश्य आ शुद्र के काम, कर्तव्य आ अधिकार छुट्यादल्कै। चाईर वर्ण के आदमी के चाईर किसिम के दण्ड कानुन अनुसार तोईक देल्कै। १०४ वरिष यै ढङ्गसे सामन्ती शासन नेपाल में चल्लै आ असली हिन्दुस्ताना व्यवहार में लागू भेल अनुभूति जनतासब करल्कै। विशुद्ध वैदिक वर्णाश्रम बमोजिम ब्राह्मण शुद्ध आ वैश्य, शुद्र अशुद्ध के रुप में व्यवहार चलैत येलै। क्षेत्रीके अधिन में राज्य सत्ता भेनेसे ओकरा शुद्ध अथवा अशुद्ध कुछो ने ठहरेल्कै। सार में धर्मतान्त्रिक हिन्दु राज्य के शासन व्यवस्था स्थापना भेलै।
नेपालमें लोकतन्त्रके पहौनका लहर :
कानुन के नजर में सबकोइ बराबर कैहके संसार भर आन्दोलन उठान भेलछेलै। भारत आ चीन आपन आपन परिस्थिति अनुकुल लोकतन्त्र आनैले सफल भेल रैहै। लोकतन्त्र के पहौनका लहर नेपाल में प्रजा परिषद के स्थापना पश्चात वि.स.१९९३ से शुरु भेलै। तकरा वीपी कोइराला राष्ट्रियता, प्रजातन्त्र आ समाजवाद के वैचारिक रङ्ग द्याके नेपाल के शोषण, दमन आ उत्पीडन में परल जनतासब के संघर्ष में लामबन्द बनेल्कै। नेपाली काँग्रेस नाम के राजनैतिक दल धर्म शासन के विरुद्ध जनता के शासन स्थापना करैले। माओ के सशस्त्र युद्ध आ गान्धी के शान्तिपूर्ण असहयोग आन्दोलन से क्रान्ति सम्पन्न करल्कै। देशमें वहुदलीय व्यवस्था स्वीकार करैत लवका राज्य व्यवस्था लागू भेलै। वि.स. २००७ साल में पहौन्का लहर से काँग्रेस देश के सशक्त शक्ति आ प्रजा परिषद प्रेरणादायी शक्ति मात्रे रहलै। यहै कारण २०१५ साल में आम निर्वाचन में काँग्रेस दुई तिहाई बहुमत प्राप्त करैले सफल भेलै आ वीपी कोइराला देश के प्रथम जननिर्वाचित प्रधानमन्त्री।
लोकतन्त्र के पहौन्का विपरीत लहर वि.स. २०१७ साल में राजा महेन्द्रद्वारा कू मार्फत् ल्याल गेल सत्ता से भेलै। दलविहीन पञ्चायती व्यवस्था लागू कैरके जनता के लोकतान्त्रिक अधिकार ३० वरिष तलिक छिनल गेलै। संविधान में हिन्दु अधिराज्य कायम कैरके राजा हिन्दु सम्राट से सुशोभित भेलै। विशेष अधिकार राजा आ राजपरिवार में सीमित भेने से सामाजिक–साँस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक विकास अवरुद्ध भेलै।
नेपालमें लोकतन्त्रके डोसर लहर :
लोकतन्त्र के डोसर लहर वि.स. २०३६ साल के विद्यार्थी आन्दोलन से शुरुवात भेलै आ २०४६ साल में जनआन्दोलन मार्फत तकरा पूरा करल गेलै। संयुक्त वाम मोर्चा आ काँग्रेस के अगुवाइ में लौह पुरुष गणेशमान सिंह के सर्वमान्य नेता माइनके जनसंघर्ष अगा बरहेल्कै आ २०४६ चैत्र २४ गते राजा वरेन्द्र दील उपर लग्याल प्रतिबन्ध फुकुवा कैरके बहुदलीय शासन व्यवस्था स्वीकार करल्कै। राजा संवैधानिक बनैले तयार भेल अवस्था में नेपाल अधिराज्य के संविधान–२०४७ जारी कैरके जनता के शासन चले लाग्लै। तीन बेर संसदीय निर्वाचन आ दुई बेर स्थानीय निर्वाचन भेलै। यै समय में निजीकरण के नीति बमोजिम खुल्ला बजार नीति अगा बरहे लाग्लै। खुल्ला बजार अर्थव्यवस्था लागू कैरके पूँजी के चलखेल अधिकतम भेलै आ राष्ट्रिय पूँजी कमजोर स्थितीमें रहलासे स्थायित्व के बदला अस्थिर राज्य व्यवस्था देखल गेलै। शिशु प्रजातन्त्रके नाम में गलत रबैया शुरुवात भेलै। भ्रष्टाचार, नातावाद आ फरियावाद के वोलवला त जे रहलै रहलै, लोकतन्त्र के लवका परिभाषा में वहस शुरु भेनेसे दोसर लहर जनता के मनोविज्ञान नै सन्तुष्ट करे सकल्कै। उदारवादी पूँजीवाद आ नव मार्क्सवाद के विचारधारा लोकतन्त्र के लवका परिभाषा स्वीकार करैले अन्कनावे लाग्लै।
लोकतन्त्र के डोसर विपरित लहर राजा वीरेन्द्र के वंशनाश पश्चात राजा ज्ञानेन्द्र के महत्वकांक्षा से भेलै। शेरबहादुर देउवा के जननिर्वाचित सरकार अपदस्त कैरके निरङकुशता बरहाबैले बेजोड प्रयास करल्कै। तै समय में संसद विघटन कैर सक्नेछेलै। अस्थिरता के फाइदा उठावैत दरवारीया सबके क्रियाशिलता में सरकार गठन करैत विशेष अधिकार संकटकाल घोषणा कैरके लेल्कै। यैसे माओवादी शक्ति आ सात दलीय गठबन्धन बीच जनआन्दोलन अगा बरहावैले वातावरण तयार भेलै।
नेपालमें लोकतन्त्रके तेसर लहर :
लोकतन्त्र के तेसर लहर वि.स. २०६२ अगहन ५ गते सात दल आ माओवादी शक्ति बीच १२ बुँदे सहमति दिल्ली में सम्पन्न भेला के वाद अगा बरहैत गेलै। संविधान सभा के निर्वाचन, संविधान सभा मार्फत नेपाल के संविधान बनावैके शर्त में आन्दोलनरत शक्ति सब बीच सहमति भ्याके २०६२/०६३ के १९ दिने जनआन्दोलन सम्पन्न करल गेलै। सहमति अनुसार संविधान सभा के निर्वाचन, गणतन्त्र के घोषणा, शान्ति प्रक्रिया के आधार निर्माण लगायत के काम अगा बरहलै। समावेशी विधेयक सबसे विवादास्पद बन्लै। थारू जाति लगायत ९२ जात जाति के मधेसी पहिचान अन्तरगत सूचिकृत करैवला नीति विरुद्ध २०६५ साल फागुनमें १३ दिने थारू विद्रोह भेलै। अखुन्वों समावेशी पुनर्स्थापना विधेयक संसद से पास हैतो सही समाधान नै देबे सकल्कै। आब के लोकतन्त्र बहुलराष्ट्रवाद में आधारित हैके छै। जब वैचारिक सैद्धान्तिक रुप में उदारवादी पूँजीवाद आ नव मार्क्सवाद विश्व समाज रुपान्तरण में कमजोर सावित भेलै त वहुलराष्ट्रवाद राजनैतिक विचार के रुप में आधारभूत तहमें देखा पर्लै। वहुलराष्ट्रवाद संघीयता के संगे स्वशासन के मर्म बोकैत समाज रुपान्तरण के दिशा में अगा बरहलै। राष्ट्रियता के दावी करैत बहुलराष्ट्रियता के पुनः उत्थान नेपाल में सोहो देखल गेलै। आपन पहिचान खोजैत अगा बरहैवला जाति समुदाय आब सामाजिक–साँस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक आ आत्मरक्षा प्रणाली अनुरुप के परम्परागत संगठन पुनः अस्तित्व में आनैके प्रयास कैर रहल्छै। आधारभूत तहमें परम्परागत सत्ता मार्फत शासित बनैके प्रक्रिया संगे पहिचान परक आन्दोलन अगा बरहल छै। तकरा कार्लो फ्युन्ते यै किसिम से संश्लेषण करने छै–
“विरोधाभासके स्थिति येहेन छै; एक ओर आर्थिक विवेक हमसब के आबैवला शताब्दी विश्व एकिकरण के युग हेतै कहैछै त डोसर ओर साँस्कृतिक अचेतन सन्देश दैछै कि यी शताब्दी जातीय दवाव आ राष्ट्रियता जागरण के शताब्दी रहतै। मुद्दा विवेक आ कल्पना हमसब के कहैछै– समाधान उ विन्दु चियै, जते एकिकरण आ पृथकता के मागसब सन्तुलित करल ज्यासके आ से संघीय शासन चियै।” यी समुच्चा असन्तुष्टीसब बहुलराष्ट्रवाद के राजनैतिक विचार से निर्देशित बहुलराष्ट्रिय लोकतन्त्र के लागू करने से मात्रे भ्यासकैये। तेसर लहर के निष्कर्ष येहा देखल गेल्छै।
अन्त में, वहुलराष्ट्रिय लोकतन्त्र स्वयं में वहसके सवाल बनल छै। यकर वैधता आ अन्तरिक शासनके अवधारणा उपर अध्ययन जरुरी देखल गेलै। यकर मुल कारण विश्व राजनीति में विकास भेल राजनीतिके नव नमुना पहिचान परक राजनीति आपन स्थान सुदृढ बन्यारहल अवस्था छै। ग्राहम ई.फुलर दावी करैछै– संसार भैर वास्तविकता यी चियै कि आदिवासी जनतासब इतिहासके कोनो निश्चित दुर्घटना से निर्माण भेल मालिक के शासन करैके शाश्वत अधिकार छै, से स्वीकार करैले तयार नै छै। तकर अर्थ आब अन्तरनिर्भरताके सिद्धान्त अबलम्बन संसार भैर व्यवहार में देखल गेलै। नेपाल में धर्मतान्त्रिक युग के राज्य संरचना भित्तर अभ्यास हैबला कोनो भी राज्यव्यवस्था स्वीकार्य नै रहलै आ नेपाल राज्य के सार आ रुप के विषयमें खुल्ला वहस भ्यारहल छै। यदि पश्चिमा अस्तित्ववादी सबके कहाई अनुसार “अस्तित्व सार से अगा रहैछै” सत्य चियै त नेपाल के सन्दर्भ में यते आदिवासी जनतासब नेपाल राज्य के सार से अगा छै। तकरा आब के दिन में स्वीकार करैत लोकतन्त्र में राजनीतिक विचार वहुलराष्ट्रवाद मान्य बन्याल ज्यासकैये। यकर आधार में प्रत्येक राष्ट्रके सार्वभौमिकता, स्वतन्त्र पहिचान, स्वशासन, स्वायत्तता आ आत्मनिर्णयके अधिकार अक्षुण राखैत नेपाली राष्ट्रियता के पुनः परिभाषित करल ज्यासकैये। सन् १९५५ में संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर बमोजिम नेपाल सार्वभौम राज्य के मान्यता पाइब तो बलगर राष्ट्रियता के रुप में विश्व समाज में प्रतिनिधित्व नै हेबे सकैके कारण प्रष्ट छै कि यी एकटा सम्झौता में निर्माण भेल राष्ट्रियता चियै। तैयो नेपाली सब राष्ट्रियता के साझा पहिचान बैन गेलै। नेपाल के अस्तित्व से सब राष्ट्रियता के अस्तित्व जोरल गेलै। इतिहास में उच्च वर्ण हिन्दु ब्राह्मण पुरुष के वर्चश्व कायम करैले षड्यन्त्र, कपटपूर्ण व्यवहार हैत येलै। तकरा कथित लोकतन्त्र के जामा भित्तर अखुन्वों अभ्यास कैर रहल्छै। धर्मनिरपेक्ष राज्य नेपाल बैन्तो तकर व्यवहारिक कठिनाईसब, कानुनी विभेदसब संशोधन करैले आनाकानी कैर रहल सावित भेल्छै। लोकतान्त्रिक संविधान के मर्म यहै ठाम विस्मित भ्यासकैये।
साभारः २०७० चैत २९, गोरखापत्र
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