सुशील चौधरी
सुशील चौधरी

सुशील चौधरी- पश्छिउहाँ देशहुक्र जस्ट की यूरोप, अमेरिका, बेलायत, इटली, फ्रान्स, जर्मनी जसिन देश कसिक विकासके खड्ढु चिहुर्ल कना बाट मन बाट चल ब्याला साँस्कृतिक पुनर्जागरणके आन्दोलनहन फे लिह सेक्जाइठ। हुक्र सयौँ बरस आपन देशके पुनर्जागरण अभियान चलैलक् इतिहास पह्र मिलठ। भाषा, साहित्य, सँस्कृति ओ दर्शनम, कलाम , मानवताम, धर्ममस्व- सचेतनाम साँस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान छिट्कैलक भेटाजाइठ। इटली, फ्रान्स, जर्मनी, जसिन देशके साँस्कृतिक पुनर्जागरणके प्रभाव युरोप भिट्टरकेल नाहोक संसारभर झन्झनाहट् पैदा कर्लक तथ्य पह्र मिलठ।
नेपाल देश बन्ना दर्मिनायम सयौँ फुला फुल्ना फुलरिया कैक कलसेफे राज्यसत्ता जस्ट–जस्ट बल्गर हुइटी गैल, ओस्ट–ओस्ट एक जात, एक भाषा, एक संस्कृतिके नीति जवरजस्त बनैटी गैलक डेख परठ। व्यक्तिगत रूपम टिप्क नेता बनाक आपन स्वार्थ पूरा कर्ना लकिन उह समाज ओ सम्प्रदायहन हेलाहा कर्ना रुख लेलक पाजाइठ। याकर विरोधम मेरमेरिक विद्रोह, आन्दोलन ओ अभियान चलल पाजाइठ। लखन थापा जेही पहिला शहिद मान गैल बा, राणा शासनके निरंकुशताके विरोधम राज्यद्रोह कर्लकपागैल बा।

जयतु संस्कृतम, मकै पर्व, राल्फाली अभियान, थाहा आन्दोलन, इन्द्रेणी साँस्कृतिक समाज (इसास), जनसाँस्कृतिक अभियान उल्लेख्य अभियान मानजाइठ। थारू समुदायम २०२८ सालम थारू भाषा तथा साहित्य सुधार समिति (गोचाली परिवार) गठन कैक महेश चौधरी, सगुनलाल चौधरी, भगवती चौधरी, अरविन्द चौधरी, श्यामनारायण चौधरी, अम्मरराज चौधरी,टेकबहादुर चौधरी, चन्द्रप्रसाद चौधरी, गजराज चौधरी, तुल्सीराम चौधरी लगायतके थारू युवाहुक्र पञ्चायत व्यवस्थाके विरोधम साँस्कृतिक पुनर्जागरणक अभियान छेड्ल। जौन अभियान पच्छिउ नेपालके थारू समुदायम एकदलीय पञ्चायत ब्यवस्थाके शोषणमूलक शासन के विरोधम हलचल मचाइल। कमैया, सुकुम्वासी, विस्थापित, छारा करुइया, गरीब किसान हुक्र आवाज बुलन्द कर्ना परिस्थिति बनल। पञ्चायत विरोधी जनमत बनैना म बरवार भूमिका गोचाली आन्दोलन के रलक मानगील बा। ओस्टक २००५ सालम गठन हुइल थारू कल्याणकारिणी सभाके थारू समाजमे रलक कुरिती ओ कुसंस्कार विरोधी अभियान के बरवार योगदान रलक मान गील बा। जाँर डारु निखैना, झाँगा, दहेज निलेना, वालबिवाह, बहुविवाह निकर्ना, जग्गा जमिन जेही टेही निवेच्ना जसिन सचेतना फैलैना काम कर्लक पाजाइठ। स्कूल पह्र जैना, भोज भतेरम ढेउरनक खर्चा निकर्ना जसिन अभियानक मार आब्ब थारून्के शैक्षिक विकास के गति और तराइके जात जातिन् म ढेउरनक बा।

माओवादी सशस्त्र द्वन्द्व के दौरानम फे थारूवान राज्यके माग कर्टी हजारौँ थारूहुक्र ज्यान गवइल। आब्ब ऊ अभियान जसिन अवस्थाम रलसेफे थारू पहिचान हन जवरजस्त स्थापित कर्लक बाट हन नजरअन्दाज कर नै सेक्जाइ। २०६२/६३ के आन्दोलनके पाछ दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर ओ सुर्खेत सम् चलल बर्कानाच साँस्कृतिक अभियान के कम ठुम्रार अभियान निरह। हाल साल दांग के नारायणपुर, जलौरा म केल रलक थारू शास्त्रीय नाच बर्का नाच वचैना ओ उलार बनैना मूल उद्देश्य रलक साँस्कृतिक जागरण अभियान स्वर्ण अक्षरले लिखागिल बा।

थारू भाषा ओ संस्कृतिके उत्थान ओ विकासक लाग थारू भाषाम पत्रपत्रिका निकर्ना प्रयास फे हुइटी रहल बा। कैलाली धनगढी से पहुरा दैनिक, दांग घोराहीसे लौव अग्रासन साप्ताहिक निक्रटी बा। अस्टक पत्रकार ओ साहित्यकार सर्वहारी ओ यी पंक्तिकार क पहलम असौँ कुवाँर से चली गोचाली मासिक निक्र भिरल बा। असौँ काठमाण्डुम डुठो ऐतिहासिक साँस्कृतिक प्रस्तुति सुरु हुइल।

काम व पेशाके क्रमम ओ उच्चशिक्षा लेना मनसुवा लेके आइल उत्साही युवा संस्कृतिकर्मी, कलाकारन्के अगुवाइम चम्पन साँस्कृतिक समूह बनल। दुई बरसम १९ ठो थारू साहित्यिक श्रृंखला कैसेक्लक ठुम्रार साहित्यिक बखेरी, कीर्तिपुर असिन सृजनशील ओ हस्तेक्षपकारी बाँही भर्लबा। २०६९ माघ महिना से सुरु हुइलक कीर्तिपुर साहित्यिक श्रृंखला थारू भाषा साहित्यिक ज्वालामुखी के रूपम उभ्रटी बा। एक बरसके समयक परगा कविता संग्रह प्रकाशनम लान सेकल बा। दुई दर्जनसे ढेउरनक ल्वाभ लग्टिक स्रष्टा जर्मा स्याकल बा।

चम्पन साँस्कृतिक समूहके गठन ओ डस्याआघ कुँवार ४ गते टिकट म थारू साँगितिक झँकार २०७१ कैक थारू साँस्कृतिक विकासम प्रस्तुति कर्ल बाट। थारू सघनगाउँ शहरम फे व्यावसायिक प्रस्तुति सुरु होगिल बा। जस्ट यी डस्या आघ धनगढीम फे टिकट म बेजोड थारू साँस्कृतिक प्रस्तुती हुइल। टिकट म थारू साँस्कृतिक प्रस्तुतीले ब्यावसायिकताके झलक् डेटी बा। गाउँ गाउँ टोल टोलम थारू साँस्कृतिक क्लब बन्ना, महोत्सव, डबनी भिराउ हुइना क्रम फे घनक हुइटी बा। आवश्यकता बाट समग्र संयोजनके।

अन्तम, असौँ डस्याके आघ ढिक्रहवक आघक दिन बर्दियक राजापुर, मनपरीपुरम थारू नाच डब्नी भिराउ म बर्का पहुना होक साँस्कृतिक प्रस्तुति निहर्ना मौका मिलल। डस्या पाछ दांग, हेकुली ,बिजुलीपुर म चुट्रीक पस्ना घुट्ठी सम पुगाक पैया लगाए पागिल। और ट और बठिन्या अग्वा मंडरिया के मन्डरक ख्वाँटक जादु ह्यार ओ मजालिह मिलल। यी सब घटना क्रम हेर्क मही लागटा, थारू साँस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान मचागिल बा। साँस्कृतिक अभियनन्ता हुक्र आव सिधा बाहन्क कपारीम कफन बाहन्क मैदानम उत्रपर्ना बेला आस्याकल बा।

साभारः गोरखापत्र दैनिक, मंसीर २१




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