पेशाले शिक्षक लोकसंस्कृतिवीद अशोक थारूक् वर्कीमारहे अन्तर्राष्ट्रिय करैनामे बरा हाँठ बटिन। थारू लोकसाहित्य, इतिहास, कला र दर्शन उहाँक् गहन पोष्टा हो। उहाँसे हाले कृष्णराज सर्वहारीक् करल उक्वार भेट।

अपने भर्खर दोलखाके जिरीमे अमूर्त साँस्कृतिक सम्पदाके गोष्ठीमे भाग लेके अइली। यी गोष्ठीके खास उद्देश्य का रहिस्?
इहे माघ ८ गतेसे १५ गते सम अमूर्त साँस्कृतिक् सम्पदाके पहिचान ओ विवरण सूचीकरण बारेम जिरेल समुदायसे मिलके गोष्ठीके आयोजना कै गैल रहे। जेकर आयोजक संस्कृति मन्त्रालय ओ युनेस्को रहे। अमूर्त साँस्कृतिक सम्पदा का हो, अभ्यास सहित यकर सूचीकरणके बारेम गहन छलफल हुइल। बास्तवमे थारू समुदायक गुरुवन्, बैडवन जिही टिही मन्टर बटाइक मन नै कर्ठा, यी सही बात हो। ओइने औरे समुदायक मनैन्से प्रत्यक्ष सम्पर्कमे अइही कलेसे अपने हमारहस, मध्यस्तकर्ताके भूमिका जो हेरा जाइ ओ गलत फलत सन्देश जाइ सेकी। यी गोष्ठीसे मै अन्तराष्ट्रिय फ्रेमवर्कमे छिर्लु। थारू साँस्कृतिक सम्पदाके राष्ट्रिय अन्तर्राष्ट्रिय बजारीकरण व्यवस्थापन करे सेक्जाइ कना उत्साहित हुइल बटुँ।

अशोक थारू, लोकसंस्कृतिवीद

अपने अष्टिम्कीक् चित्र मजा बनुइया मनै खोज्टी बटी। यकर बारेम कुछ अनुभव सुनैवी कि?
संस्कृति मन्त्रालय प्रत्येक बरस मेरमेरिक लोक, चित्रकला बनुइया मनैन् पुरस्कृत कर्ठा। मिथिला पेन्टिङ अन्तर्राष्ट्रिय बजार ले सेकल। थारू अष्टिम्की पेन्टिङ जुन राष्ट्रियकरण हुइना टे दुर, थरुहट मे फेन हेरैटी जाइटा, जौन कि मिथिला पेन्टिङसे कम नैहो । ओहेसे मन्त्रालयसे प्रस्ताव कैके मजा अष्टिम्कीक् चित्र बनुइयन पुरस्कृत कर्ना योजना कर्लक हो। मने पुरस्कारयोग्य व्यक्ति खोज्ना बहुट कर्रा परल।
टुहीन पुरस्कृत करब, अपन बनैलक चित्रसहित कार्यक्रममे भाग लेहे आ डेहो कहेबेर फेन मनै महिन फूर्सद नै हो कना जवाफ डेठ, थारून् अपन लोक संस्कृतिप्रति मैया नै लागट डेख्के कभु काल्ह ट दिक्क लग्ठा।

भर्खरे धनगढीमे थारू साहित्य प्रतिष्ठानके आयोजनामे थारू पोष्टा प्रकाशनके लग साझा पहल हुइ पर्ना बात उठल बा। यम्ने अपनेक कहाइ का बा?
यी बहुट मजा प्रस्ताव हो। २०६०/६१ साल ओर सुशील चौधरी, एकराज, श्रीराम, अपने लगायत संघरियन जव गुर्वावा प्रकाशन प्रालि दर्ता कर्ले रही। टब्बे थारू पोष्टा प्रकाशनके लग साझा पहल करे परल कना मै सुझाव फेन डेले रहँु। हम्र हल्काफुल्का साहित्य लिखके कहियासम मख्ख पर्ना हो। सामूहिक प्रयाससे गम्हीर थारू साहित्य प्रकाशन कैके देभभर छिटकाइ पर्ना जरुरी बा।

थारू भाषक् गम्हीर साहित्य अन्य भाषम् उल्ठा हुइ नै सेक्ठो। यकर कारण का हो?
यी प्रश्नके उत्तरमे मै एक्ठो उदाहरणसे डेहक चाहटुँ। अमेरिकी दम्पत्ति कर्ट मेयर ओ पामेला डुयल २०५५ सालमे अँग्रेजी, नेपाली, थारू भाषामे बर्कीमारहे प्रकाशन कर्ला, याकर डकुमेन्ट्री फे बनल बा, जेम्ने मोर अधिक सहयोग रह। दाङके जलौरामा किताबके स्टल ढै गैल रहे। एक्ठो विद्यार्थी किताबके मोल पुछल टे ८० रुप्या ठाहा पाइल। ओकर जवाफ रहिस– ओहो, कुछ रकम ठप्लेसे टे वियर आ जाइ। कर्ट मेयर यी जवाफ सुनके निराश हुइल। २५० थारू गाउँ घुमल ऊ थारून् उठाइ नै सेकम् कैहके नेपाल छोर डेहल। जबकी जस्टे पहिले रामायण सब्के घर घरमे रहे, ओेस्टक थारून्के घरेम बर्कीमार हुइ पर्ना जरुरी पोष्टा हो। हमार भाषा साहित्यहे संरक्षण करुइयन हम्र चिन्हे नै सेक्ठुइ, हीरामे कीरा लगाइटी।
साभारः २१ माघ, गोरखापत्र




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