CN Tharuसीएन थारू- नेपाल राष्ट्र राज्य निर्माण समय में यते पटक पटक भिडन्त भेल्छै। भिडन्त आ अन्तरघुलन से राज्य निर्माणके यी प्रकृया में बहरिया सब जे मुसलमान से हारलो में युद्धके दाहसब सिखने रहै यी भूमी में आपन राज्य फैलाबैमें सफल भेलै। यतवेहेक नै राज्यके मार्ग निर्देशक सिद्धान्त वैदिक हिन्दु सभ्यताके जगमें निर्मित ब्राह्मणवाद मानल गेलै। तै आधारमें सामाजके चरित्र विकास करैके दर्वियानमें असली हिन्दुस्थानाके परिकल्पना करल गेलै। एक भाषा एक भेषके राष्ट्रियता निर्माण करैके नीति बमोजिम करिब २५० बरससे निरन्तर राज्यके श्रोत परिचालन करैत आइब रहल यतेका बहिरियासब रैथानेके प्रथा, चालचलन आ परम्परागत सँस्कृतिके कुरीति, पछौटेपन, अन्धविश्वास आदि कहैत तिरस्कार, उपहास, घृणा आ दमनके माध्यमसे विस्मृतिमें पुगाबैके काम करल्कै।
इतिहास जितलसबके निर्माण भेल्छै आ यी यथार्थताके स्वीकार करैत विश्व आदिवासी परिषदसे सत्तरीके दशकमें सन् १९७६ में महासम्मेलन कैरके घोषणा पत्र जारी करल्कै। जै घोषणा पत्र मार्फत संसारके प्रथम राष्ट्र आदिवासीसबके संस्कृतिमें आधारित विकास मात्रे दिगो विकासके अवधारणा मानल जेतै से बात उल्लेख भेल्छै। विशेष कैरके जलवायु परिवर्तन के समस्या आदिवासी ज्ञान आ प्रकृतिमैत्री जीवन पद्धतिसे मात्रे सम्भव देखल जायके बात स्वीकार करलगेला से आदिवासी ज्ञान आ प्रथाजनित कानुनसब कोनो आधुनिक विकास कार्यकर्तासबके मत अनुसार पछौटेपन के आधार नै भ्याके विकासके अनिवार्य शर्त चियै। आब आदिवासीसब गर्वसे आपन पूर्खाके विरासत थामैले सक्तै कि नै विचारणीय पक्ष यी चियै। आधुनिक विकासके अवधारणा वस्तुकरणमें आधारित भेनेसे हरेक वस्तु विक्री या खरिद करल जाइके कारण अखुन समाज में फेर बदल यल्छै। गामघर आ शहर के समाज निर्माण, सभ्यताके विकास, जीवन पद्धति, उत्पादन प्रणाली आ मनोविज्ञान स्वयम् में सब अलग अलग अनुसन्धानके विषय बनैछै। सामाजिक अध्ययनके वैकल्पिक धार विकास करनाई अखुनका चुनौती चियै। यकर विना दुविधाके निवारण करैके उपाय नै देखल गेल्छै।
थरुहट आन्दोलनके अन्तरवस्तु :
थरुहट आन्दोलन कैहके वि.स. २०६५ साल फागुन १९ गते से चैत्र १ गते नेपालके राजनीतिमें देखल गेल धक्का बुझहल जाइछै। यकर इतिहास लम्बा छै। नेपाल राज्यके विस्तार पश्चात जब थारू जाति के आपन परम्परा आ परम्परागत संस्थाके जग कमजोर बनैत गेलै तकरवाद यी जातिके साधन श्रोत उपरको पहुँच कमजोर हैत गेलै। वि.स. १९१० के मुलुकी ऐन थारू जाति के मासिने मतवाली अन्तरगत सुचिकृत करल्कै। थारू तखुन्वो वैदिक हिन्दु सभ्यतासे अलग छेलै कैहके सावित भेलो में आई १६० बरसके दर्वियानमें तराई मधेसके आदिवासी अर्थात् मधेसी सुचीकरणके दोसर स्वरुप बदललकै। तैहिया तागाधारी शासक से अपमानित भ्याके साधन श्रोतसे विमुख हेवे पर्लै आ आब मधेसी विचौलियासे हैरान बनावैके दाहमें छै। यकर असर दुरतलिक देखल जायके बात प्रमाणित छै। थरुहट आन्दोलनके अन्तरवस्तु थारू कथि चियै? तकरा पुष्टि करनाई पहौनका उद्देश्य रहै। दोसर थारू जाति एकटा स्वतन्त्र आ सार्वभौम राष्ट्र चियै से प्रमाणित करैके छेलै। यी सच्चाईके प्रमाणित करैले ज्ञान मिमांसाके अनिवार्य शर्त मानैवला बात स्वयम् सिद्ध छेलै। तकरा थारू अगुवासब देखासिखिके बात बन्यादेल्कै। आन्दोलनके एक चरण पूरा करलाके वाद तकर सम्बन्ध कते जोरल जेतै कोनो उपाय नै देखल्कै आ ताब ज्याके टुटफुटमें परिणत भेलै। अगुवासबमें जब आन्दोलनके जग नै जानकारी भेलै टब ट्रायल आ इरर में फसैत गेलै। तकरा ढाकछोप करैले आन्दोलनके सहारा लैत गेलै आ आन्दोलन प्रभावहीन बनावैत गेलै। तयारी विषय गौण भेलै आ आरोप प्रत्यारोप उत्कर्षमें पुगे लाग्लै। अन्ततः अगुवासब पलायन हैके स्थिति बन्लै। अखुन्वो थरुहट आन्दोलन भज्याके स्वार्थ सिद्ध करैबला के कमी नै छै। स्थिति येहेन बने लाग्लै कि थरूहट आन्दोलन के विकृत रुपसब अखुन राज्यके नजरमें गोहुँ आ तरकारी बारी में गारल मानवरुपी बुख्याँचा (झुक्का) चियै। जकर लेल आन्दोलनसे दवाव सिर्जनाके बात करैछै ओकरा कोनो गम नै छै।
THARUHAT Photo (1)

यथार्थमें थारू जाति चियै कि नै?
यी सवाल गम्भिर छै। थारू आदिवासी कहलेनाई आ थारू जाति कहलेनाई में भिन्नता छै। आदिवासीके सम्बन्ध वतेका माइटसे रहैछै। जब नेपाल राज्य निर्माण भेलै तै से हजार वर्ष पहौनका वासिन्दा भेनेसे यकरा आदिवासी कहैमें राज्यके कोनो एतराज नै। अखुन थारू जाति चियै कैहके वहस चल्याल जाय त यकर विपरित मतके बौछार बर्से लाग्तै। यकर वहौतो कारण सब देखल गेल्छै। कम्युनिष्ट नेता जोसेफ स्टालिनके शब्दमें जातिके अर्थ अलग छै। जातीय मुक्तिके सवालमें ओकर मत छै : जाति ओकरा कहल जाइछै जै समुहके आपन निश्चित भूगोल छै, साझा बोली भाषा छै, साझा आर्थिक जीवन पद्धति छै, साझा मनोविज्ञान छै। यै परिभाषा अनुसार थारू जाति चियै कि नै अन्वेषण के विषय देखल गेल्छै। यकरा प्रष्ट नै करल अवस्था तलिक राष्ट्रियताके दावी अपूर्ण रहतै। तखुन राष्ट्रिय मुक्तिके सवाल से आन्दोलन अलग देखल जेतै आ आन्दोलनके अन्तरवस्तु से वेमेलके स्थिति बन्तै। यहै ठाम आन्दोलन दिशाविहीन बनैके सम्भावना बेसी रहैछै। आइहलौज यकरा संवेदनशील विषय नै बनेने छै आन्दोलनकारी अगुवासब।
थारूसब के चियै?
यी सवाल के जवाफ राजनीतिक रुपमें खोजल ज्यासकैये। राजनीतिक शास्त्रके प्राध्यापक श्यामुल पी. हन्टिङ्टन आपन किताब द क्लास अफ सिभिलाइजेशन में लिखैछै कि हम के चियै? तकर जवाफ खोजैसे पैहने हम कथि नै चियै? बुझहैले जरुरी छै। ताबे ज्याके हम ककर विरुद्धमें चियै? से पता पावैके उपाय भेटतै। यते अखुन कहल जाइछै कि हम मधेसी नै चियै। यी कहैत समय हम हिन्दु नै चियै से स्वीकार करैके हिम्मत राखैले पर्तै। थारू हिन्दु नै चियै अर्थात् वैदिक सभ्यताके जगमें थारूके परम्परा, प्रथाजनित कानुन, आस्थाके धरोहर नै स्थापित भेल्छै। यते यकरा प्रमाणित करैके लेल तथ्यसब अनगिन्ती छै। थारू के ज्ञान के जग तन्त्रमन्त्र अर्थात् मारन, मोहन आ उचाटन चियै। जब थारू सब कोनो कारण खतराके महसुस करै त तकरा समाधान करैले यी तन्त्रमन्त्रके सहारा ल्याके खतरामुक्त हैके सोंच विकास करल्कै। अखुन्वो शिराथानमें रजहैन धाईम के प्रभाव देखल जाइछै आ डिहवार थान में सोहो विना धामी आइनके मुख्य पूजा नै दैके चलन छै। हिन्दु, बौद्ध, इस्लाम, इसाई कोनो भी सभ्यता के जग तन्त्रमन्त्र नै भ्याके उपरोक्त सभ्यतासब तर्कवाद में विकास भेल प्रमाणित भ्यासक्लै। यकरा प्रमाणित करैले विभिन्न साहित्य के विकास करने छै आ तकरा विश्वविद्यालय स्तरमें अध्ययन करावे लागल छै।
थारू के ज्ञान अखुन्वो तर्कवादी नै भ्यासकल स्थितिमें मौखिक तहौमें अभ्यासकर्ता सब मात्रे यी विद्याके अर्थ जानैछै। यतहेक उल्लेख करैके अर्थ हम थारूसब हिन्दु नै चियै। यते हिन्दुकरणके जवरजस्ती प्रयास करल गेलै आ राज्य तकर लेल महत्वपूर्ण भूमिका खेलल्कै। हमसब बुद्धके विचारसे कोनो ठाममें सहमत भ्यासकैचियै। यकर अर्थ हमसब बौद्ध धर्माबलम्बी सोहो नै चियै। ओर दिनसे प्रकृतिपूजकके रुपमें समाज अगा बरहल छै। तन्त्रमन्त्रके जगमें सभ्यता निर्माण भेलासे आस्था के धरोहर कोनो शक्तिशाली देवदेवी नै भ्याके धरती, सूर्य, खोला नदी, वन जंगल आदि मानल गेल्छै। यहै कारण नेपालके सन्दर्भ में थारू आब ब्राह्मणवादके विरुद्ध में सिधे प्रहार केन्द्रित करैके निर्विकल्प उपाय खोजी करे पर्लै। मधेसी सूचीकरण सोहो ब्राह्मणवादी चिन्तनके उपज चियै। आब शक्तिके केन्द्रिकरण कैरके कोनो भी हालत में ब्राह्मणवाद निशाना बनौक। तकरे खातिर थारू सार्वभौम राष्ट्र चियै आ राष्ट्रियता के दावी घनिभूत रुपमें उठाबैके काम अगा बह्रावे पर्लै।
थरुहट आन्दोलनके अगामी कार्यभार कथि?
राष्ट्रिय मुक्ति आन्दोलन के पृष्ठभूमि में मात्रे थरुहट आन्दोलन के औचित्य पुस्टि भ्यासकैये। यहौ से थरुहट आन्दोलन के कार्यदिशा प्रष्ट करैके जिम्मेवारी आन्दोलनकारी के चियै। थारू अखुन्वो गामघर के समाजमें मिलैछै। वकर आर्थिक जीवन गामघरसे मेल खाइछै। तखुन थरुहट आन्दोलन के आधार क्षेत्र गामघर बनैके जरुरी देखल जाइछै। अर्थात् आपन जग गामघर में बलगर बनावैके अर्थ गामघरके राजनीतिमें पकड कायम करैले कोनो पार्टीके सहारा विना परम्परागत संस्थाके बलमें अगुवाई हैके बात स्वीकार करे पर्लै। यत्वेहेक से काम नै चल्तै। गामघरके मनोविज्ञान से मेल खाइबला विचारसे निर्देशित पार्टी सोहो दोसर कार्यभार चियै। सचेत अगुवाके नेतृत्वमें सही कार्यदिशा बनेनाई थरुहट आन्दोलन के महत्वपूर्ण कार्यभार मानल जाइछै।
आदिवासी विद्रोह के काउन्टर मोडेल चार विकल्प आ चार तयारी के आधार में मात्रे तय करल ज्यासकैयै। तकर लेल वर्ड चर्चिल के चार विकल्प समेत प्रभावी वैन सकैये । चार तयारी मे वैचारिक तयारी, राजनीतिक तयारी, भौतिक/आर्थिक तयारी आ साँगठनिक तयारी वेगर कोनो भी आन्दोलन निर्णायक नै बने सक्तै। यी सबके समग्र विषय विस्तारित कार्ययोजना कहल गेलासे विस्तारित कार्ययोजना निर्माण करनाई थरुहट आन्दोलनके आगामी कार्यभार देखल जाइछै।
अन्त्य में थरुहट आन्दोलन वलिदानी माइङरहल छै। भ्रम के चिरफार आ वास्तविकताके बोध आब नयाँ संश्लेषण मात्रे लाबे सक्तै। लवका संश्लेषण वहसके श्रृङ्खलाबद्ध कामसे सम्भव भ्यासकैये। तकरा व्यवस्थित करैले साँस्कृतिक सम्वाद केन्द्र के स्थापना करल जायके बात छै। साँस्कृतिक सम्वाद केन्द्र विचार निर्माणके आधार बैन सकैये। थरुहट आन्दोलन लवका संश्लेषण के आधारमें परिचालन हैके अर्थ नेतृत्वमें रुपान्तरण के वात छै। यी सबसे कठिन काम चियै। नेतृत्व प्रतिके विश्वास आपसी कलह, अथवा नेतृत्वके पलायन से मात्रे नै गुमल छै। यते ज्ञानके आभावमें विचार सही नै भेनेसे भ्रमित भेलै। अविश्वास के विश्वासमें वदलैले एक चरण ज्ञानमिमांशा में लगानी के जरुरत छै। तकर खातिर सामुहिक प्रयत्न चाहि। लगानी के क्षेत्र किटान कैरके आगा बरहलासे थरुहट आन्दोलन सशक्त बनावैके लेल यी पहलकदमी हैके छै। अखुन दोधार के स्थिति जे देखल गेल्छै, यै अवस्थामे स्वभाविक रुपमें एकटा कहावत प्रभावी बैन्तै कि दुविधामें न राम मिले न रहमान।
थारू प्रतिस्थापन विधेयक पारित भेलासे आब तराई मधेसके आदिवासी बैन गेलै। तकर मतलब आब मधेसीके विला लाइग गेलै कहैवला वात अस्थायी चियै। संघात्मक व्यवस्थामें थारू आपन पहिचान खोजी कोन ढङ्गसे करल जेतै से तथ्य गम्भिर बहसके विषय चियै। उपरोक्त विषयसब में विचार करल ज्या त आब ज्ञानके बलमें अखुन्का संकट निवारण करल ज्या सकैये। दुविधाके वर्तमान परिस्थिति के अन्त्य वेगर कोनो भी आन्दोलन सफल नै बने सक्तै से ओर दिनसे प्रमाणित भेल्छै। प्रमाणित भेल तथ्यके अभ्यास करलासे शक्तिके क्षय बाहेक कथि भ्यासकैये?
साभारः गोरखापत्र, बैशाख ३०




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